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पगले! ऐसे क्यों रोता है? / गौरव शुक्ल


गिरने से मत घबरा राही,
रख अपना हौसला बढ़ा ही,
सूर्य-चन्द्र दे रहे गवाही;
अस्त हुआ जो आज, हमेशा, उदय उसी का कल होता है।
पगले! ऐसे क्यों रोता है?

जो कुछ तेरे हाथ न आया,
वह पहले ही रहा पराया,
जो तेरा था, तूने पाया।
फिर किस कारण बोझ गमों का, अपने सीने पर ढोता है?
पगले! ऐसे क्यों रोता है?

जो कुछ गया, उसे जाने दे,
मन को और न पछताने दे;
नये-नये सपने आने दे।
यह अनमोल ज़िन्दगी घुट-घुट, कर, सस्ते में क्यों खोता है।
पगले! ऐसे क्यों रोता है?