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फिर उठेगा शोर एक दिन (गीत) / शुभम श्रीवास्तव ओम

फिर उठेगा शोर एक दिन

दो घड़ी की रात है यह
दो घड़ी का है अँधेरा,
एक चिड़िया फिर क्षितिज में
खींच लाएगी सवेरा ।

मानता हूँ आज की
ये रात मुश्किल है मगर —
लौट आएगा वो कल का
बीत बैठा दौर एक दिन ।

कब तलक घुटता रहेगा
हक-सरे बाज़ार में,
एक दिन हलचल मिलेगी
देखना अख़बार में,

लोग उमड़ेंगे सड़क पर
हाथ में ले तख़्तियाँ
बाज़ू-ए-क़ातिल नपेगा
फिर तुम्हारा ज़ोर एक दिन ।

दग्ध आवेशों में तन-मन
जल रहा तो क्या करूँ ?
एक सपना फिर भी दिल में
पल रहा तो क्या करूँ ?

काँपते ये हाथ लिखने में
कहानी आज की, पर
गुनगुनाते होंठ से —
गाएगा कोई और एक दिन ।