यूँ तो दिखायी देता मौसम बहुत सुहाना
जब चाहे बदल जाये मौसम का क्या ठिकाना
हाँ आज तो सभी की फ़ितरत है मौसमों सी
पल भर में भोर समझो पल रात का बहाना
हैं रात के अँधेरे सब को डरा रहे अब
उम्मीद की किरन ले दीपक जरा जलाना
ठोकर है हर कदम पर थक जाये जिन्दगानी
ममुश्किल बड़ी हैं राहें धीरे कदम बढ़ाना
वो ग़ैर की हमेशा तक़दीर रहे लिखते
पड़ जाये आज शायद खुद को ही आज़माना
मंझधार है भँवर है नैया भी है पुरानी
है छिद्र भी तले में हिम्मत न हार जाना
तमको न रोक पायें तूफ़ान आँधियाँ भी
अब पाँव रुक न जायें मंजिल बने ठिकाना