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|रचनाकार=अजेय
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<poem>
'''लड़कियाँ'''
'''सपने'''
तैरते रहते हैं सपने
इनकी छोटी चमकीली आँखों में
अपने-अपने सपने
तरह-तरह के -
ज़िन्दगी में कुछ अलग कर दिखाने के
कुछ ढर्रे पर चलती ज़िन्दगी का हिस्सा बन
औरों के जैसे बन जाने के।
ज़्यादातर तो किसी के कंधे से कंधा मिला
हाथों में हाथ डाल
बहुत दूर निकल जाने के
और कुछ थोड़े से, सब से अलग
बहुत दूर निकले हुओं के उजड़ते घर सम्भालने के
आश्चर्यजनक
अजीबो-ग़रीब
सपने ही सपने ।
'''मछलियांमछलियाँ'''
'''मछुआरा'''
बस चन्द दिन और.....
किसी दुश्चिंताओं से भरी दोपहर
जब भीमकाय युक्लिप्टस झूल रहे होंगे सड़क के किनारे
मछुआरा समय
चुपके से उतार रहा होगा व्यासा में अपना जाल
आतंक से बेतरतीब हो रही होगी मछलियाँ
धीरे-धीरे बिछुड़ने लगेंगी लड़कियाँ
फिर पनीली आँखों में
कुछ और सपने लिए आएँगी लड़कियाँ
फिर उन सपनों और लड़कियों को
अलग-अलग पहचानना कठिन हो जाएगा ।
</poem>

