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थारा रमझोल खs लगी जगाजोत वो
गढ़ छपेल रनुबाई अजब बनी।
 
हे रनुबाई ! तुम्हारे माथे कि बिंदी, शीश का टीका, कान के लटकन बहुत ही सुन्दर लग रहे है। तुम्हारे कान के कंगन, अंगूठी, कमरबंद, गुच्छे की घड़त न्यारी है। तुम्हारे झुमके अंग की साडी और उसके पल्लव की शोभा न्यारी है।
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