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Kavita Kosh से
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अलौकिक थी
निष्पाप, निश्छल
आद्र दृष्टि के साक्ष्य मे में
अंतिम चुंबन तक
हम देह पर देहिल गंध
अतृप्तता के अरण्य से
एक अंतहीन असमंजस
अनंत आपाधापी लिये
हम दोनों प्रेम मे मेंप्रेम के अपराधी हो चुके थे !!.
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