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20:15, 23 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
उसे बैठाया गया है बीचोबीच
वह घिरी बैठी है-
उसके हाथों पर मेहँदी
और उबटन से
निखारी जाती देह
पूरी कोशिश में है नाइन
कि बालों की चमक
कुछ और खिले
कुछ और गोपनीय ज़रूरतों को पूरने
प्रस्तुत हैं सखियाँ
वह खुद भी बैठी है
खुद को प्रस्तुत-
जैसे
पोंछती हो प्रेम से
कोई अनकहा अतीत
छिपा हुआ मन में।
</poem>