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12:56, 5 फ़रवरी 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिवदेव शर्मा 'पथिक'
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जागो भारत के जन-गण-मन,उत्तर से आई है पुकार
नेफा लद्दाख बुलाता है , नगराज पुकारे बार-बार !
उत्तर की सीमा पर तुमसे परदेशी लड़ने आया है,
कौन मूर्ख अंगुलियों से विष-व्याल पकड़ने आया है?
रे!कौन नाश को बुला रहा, किसलिए अकड़ने आया है?
राणा प्रताप की धरती से फिर कौन झगड़ने आया है?
यह भरतभूमि, मनुपूतों को किस पागल ने ललकारा है ?
किसने इसकी सीमाओं पर फिर अपना पाँव पसारा है ?
जल उठी आग हर सीने में ,उठ रहा प्रलय का महाज्वार!
जागो भारत के जन-गण-मन , उत्तर से आई है पुकार!
जागो भारत के सेनानी, भारत माँ की कह रही लाज
उत्तर के पथ से लपटों की अल्हड़ सरिता बह रही आज
हिम की चोटी से देख रहा नटराज विश्व का परिवर्तन
जिसकी आंखों में ज्वालाएँ जिसके पग में तांडव नर्तन
मत छेड़ हिमालय को पागल! शंकर इसका रखवाला है
इसकी घाटी में जाग रहा, फिर से सुभाष मतवाला है
रे! वीर भगत की वाणी से गुंजित है इसका आर पार
जागो भारत के जन-गण-मन उत्तर से आई है पुकार!
यह कौन विदेशी खड़ा देख ! उकसाता हैअंगारों को ?
रे कौन जगाना चाह रहा ,सोई प्यासी तलवारों को?
यह कुँवर सिंह की मातृभूमि हर बेटी लक्ष्मीबाई है
हर नौजवान है खुदीराम , कवि बना चन्दवरदाई है
स्याही के बदले आज कलम बारूद उगलने वाली है
बज रहा बिगुल रणघोष करो रोशनी निकलनेवाली है
भारत माँ के हर बेटे में अब गरम खून लहराया है
रुक अरे प्रपंची ! देख इधर तूफान किधर से आया है?
अब जाग हिन्द के रखवालों,अब जाग हिन्द के कर्णधार ,
जागो भारत के जन-गण-मन उत्तर से आई है पुकार!
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