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जन्मदिन / नेमिचन्द्र जैन

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|रचनाकार=नेमिचन्द्र जैन
}}
 
परसों फिर
 
हमेशा की तरह
 
पत्नी बच्चे और शायद
 
कुछ मित्र
 
कहेंगे
 
मुबारक हो।
 
बार-बार आए यह दिन।
 
 
मुबारक।
 
कब तक मुबारक?
 
बार-बार
 
और कितनी बार चौहत्तर के बाद?
 
 
मेरे मन में उठते हैं सवाल
 
उठते रहते हैं
 
कोई ठीक उत्तर नहीं मिलता
 
लालसा हो चाहे जितनी अदम्य
 
भले हो अनन्त
 
क्षीण होती शक्ति
 
और ऊर्जा
 
लगातार जर्जर होते अंग
 
कर ही देंगे उजागर
 
कि अब इस दिन का और आना
 
ख़ुशी से भी अधिक
 
यातना की नई शुरूआत है।
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