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18 अगस्त {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रश्मि प्रभा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
आज भीड़ है
सब तुम्हें देखना चाह रहे हैं
तुम्हारा नाम पुकार रहे हैं
बहुत मुश्किल से तुम आगे जा पा रहे हो!!!...
कल ख़ामोशी होगी
दूर दूर तक
तुम्हें कोई आवाज़ सुनाई नहीं देगी
अजनबी निगाहों की छुवन में
तुम यह आज ढूंढोगे!!!
आज सहजता से,
विनम्रता से,
अपनत्व के साथ इनको छू लो,
शायद कल कोई तुम्हें पहचान ले ।
</poem>