Changes

भीड़ / रश्मि प्रभा

1,198 bytes added, 18 अगस्त
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि प्रभा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रश्मि प्रभा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भीड़ !
जहां हर कोई बोलता है,
पर सुनता कोई नहीं है
जो भीतर की आवाज़ को दबा देता है...
अकेलापन !
जहां शब्द हाहाकार करते हैं,
स्मृतियां
लहरों की मानिंद तैरती हैं...
या वह सन्नाटा
जहां न चाह है, न पीड़ा,
केवल एक ठहरा हुआ मौन है...
इन तीनों के बीच झूलता जीवन
कभी खुद से लड़ता है,
कभी खुद में छिप जाता है...
पर एक दिन
मृत्यु आ ही जाती है !
बिना किसी दस्तक के,
बिना तर्क के,
बिना यह पूछे कि
तुम भीड़ में थे,
अकेले थे या बस चुप थे ?
</poem>