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<poem>
बनारस की सड़कों पर बहुत शोर है
घंटियां, मंत्र, भीड़,
चाय की प्यालियों की टकराहट,
मृत्यु की पगध्वनि तक...
पर इन सबके बीच
कुछ ऐसा भी है
जो कुछ नहीं कहता
मौन में कांपता है।

घाटों पर बैठे लोग
जो किसी अपने को गंगा में सौंप चुके हैं
उनकी आंखों में एक स्थिरता है
जो रोती नहीं,
पर भीतर तक गीली रहती है ।

बनारस की दीवारों पर
जिन नामों को तुमने चॉक से लिखा देखा,
वो शायद किसी की अंतिम स्मृति है
जो कभी पुकारी नहीं गई,
पर हर बार
वहां से गुजरते हुए
किसी ने एक गहरी सांस ली है।

गंगा का बहाव सिर्फ़ जल नहीं बहाता
हर अस्थि, हर फूल, हर दीप
उस मौन में डूबकर कुछ कहता है
जिसे कान नहीं
अंतरात्मा सुनती है।

बनारस में मृत्यु चुप रहती है,
पर शोर में गूंजता यह मौन ही
बनारस की आत्मा है।
</poem>