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26 अगस्त {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमन मुसाफ़िर
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<poem>
ईंधन जुटा लिया गया है आग के लिए
घर में नमक बचा नहीं है साग के लिए
सीता तो छोड़कर के ये दुनिया है जा चुकी
अब राम भी न है कोई परित्याग के लिए
सारे समीकरण वो गया तोड़कर अभी
कुछ भी नहीं बचा है गुणा भाग के लिए
अब आप भी जहान की रस्में निभाइए
कोई तो ज़ख्म दीजिए इस दाग के लिए
मीरा के पास कृष्ण तो आयेंगे ही ज़रूर
रैदास को बुलाओ किसी राग के लिए
</poem>