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8 नवम्बर {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भगवती प्रसाद द्विवेदी
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<poem>
बेटियाँ इतिहास रचती रहें
कुछ ऐसा करें!
खुलेपन की हिमायत भी
जकड़बंदी भी वही,
बने हाथी-दाँत कब तक
रहेंगे, शिकवा यही
खलबली चहुँओर मचती रहे
कुछ ऐसा करें!
फूल-कलियों, तितलियों की
ख़ुशबुओं की चाह हो,
पर चमन की हिफ़ाज़तकी
ही नहीं परवाह हो
पुतलियों-सी मगन नचती रहें
कुछ ऐसा करें!
बढ़ें बेटी, पढ़ें बेटी
तुंग शिखरों पर चढ़ें,
हम सभी को कर अचम्भित
अपनी क़िस्मत ख़ुद गढ़ें
मनुजता की साख बचती रहे
कुछ ऐसा करें!
हौसलों का, उड़ानों का
हुनर का जयगान हो,
करवटें लेते समय की
धार की पहचान हो
पाखियों की पाँत जँचती रहे
कुछ ऐसा करें!
बेटियाँ इतिहास रचती रहें
कुछ ऐसा करें!
</poem>