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अब चलो ये भी ख़ता की जाए /गोविन्द गुलशन
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|रचनाकार=गोविन्द गुलशन
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<Poem>
अब चलो ये भी ख़ता की जाए
दिल के दुशमन से वफ़ा की जाए
दर्दे-दिल है ये मज़ा ही देगा
दर्दे-सर हो तो दवा की जाए
</poem>
अनिल जनविजय
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