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<Poem>
शब्‍द आग हैं
जिनकी आंच आँच में
सिंक रही है धरती
जिनकी रोशनी में
हमारे औजार की
हमारे हर दुःख दुख में हमारे साथ
शब्‍द दोस्‍त हैं
जिनसे कह सकते हैं हम
बिना किसी हिचक के
अपनी हर तकलीफतकलीफ़
शब्‍द रूंधें रूँधे हुए कंठ में
चढ़ते हुए गीत हैं
वसंत की खुशबू से भरे
शब्‍द पौधे हैं
बनेंगे एक दिन पेड़
अंतरिक्ष से आंखें आँखें मिलायेंगे
सिर
झुका हुआ
लाचार धरती का ऊंचा उठायेंगे.ऊँचा उठायेंगे।</poem>
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