वो दर्द लायें कहां से कही हुई बातें
जो दर्द दिल में जगाती हैं अनकही बातें
हर एक शख़्स को कमतर समझने लगते हैं
कुछ एक लोग बना कर बड़ी बड़ी बातें
किसी दुकान पे इन को सजा नहीं सकता
हसीं हैं वरना तुम्हारी तरह मिरी बातें
जिन्हें ग़रूर था ख़ुद अपनी पाकबाज़ी पर
तवाइफ़ों की तरह बिक गईं वही बातें
है किस के पास वो फुर्सत कि सुन सके “ज़ाहिद”
ग़म-ए-हयात मंे डूबी हुई मिरी बातें
शब्दार्थ
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