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वो रात आख़िरी थी, ये शाम आख़िरी है / चेतन दुबे 'अनिल'
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वो रात आख़िरी थी, ये शाम आख़िरी है।
मेरी ज़ुबाँ पे तेरा ये नाम आख़िरी है।
मुझको पता नहीं था तू इतनी बेवफ़ा है
पत्थर का दिल है तेरा इल्ज़ाम आख़िरी है।
मैं मर गया तुम्हीं पर सैय्याद कुछ न बोला
मेरे दर पे आ भी जाओ पैग़ाम आख़िरी है।
मेरे दृगों के आँसू बेमोल चुक गए सब
मुस्कान एक तेरी बस दाम आख़िरी है।
देकर हज़ार आँसू मुस्कान एक पाईं
मोहब्बत के मैक़दे का तू जाम आख़िरी है।
मेरे आँसुओं में डूबी मेरे इश्क़ की कहानी
ये तेरी रहबरी का अंज़ाम आख़िरी है।
तेरे हुस्न से न आई तिल भर वफ़ा की ख़ुश्बू
फिर भी तू मेरे दिल की गुलफ़ाम आख़िरी है।

