सब्र मुश्किल है, ज़ब्त है दुशवार
दिले-वहशी है और जुनूने-बहार
लुत्फ़ कर लुत्फ़, ऐ सरापा<ref>सिर से पाँव तक</ref> नाज़ !
तुझपे रंगीनी-ए-बहार निसार
रुह आज़ाद है ख़याल आज़ाद
जिस्मे-’हसरत’ की क़ैद है बेकार
शब्दार्थ
<references/>सब्र मुश्किल है, ज़ब्त है दुशवार
दिले-वहशी है और जुनूने-बहार
लुत्फ़ कर लुत्फ़, ऐ सरापा<ref>सिर से पाँव तक</ref> नाज़ !
तुझपे रंगीनी-ए-बहार निसार
रुह आज़ाद है ख़याल आज़ाद
जिस्मे-’हसरत’ की क़ैद है बेकार