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सिरहाने रख कर तस्विर जब नीन्द आने लगे / क्षेत्र बहादुर सुनुवार
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सिरहाने रख कर तस्विर जब नीन्द आने लगे
अपने और बेगाने यहाँ सब पहचाने जाने लगे
कहीं तो लरजता हैं कोई होंठ मेरे नाम से भी
हवाओं में गुँचा-ए-ख़ुश्बु हाय क्यों लहराने लगे
अध-खुले रूखसार पर गेसुओं के सियाह और
कह कर तहज़ीब की बाते मुझे आज़मा ने लगे
देखकर आये हैं आईने में ख़ुद फ़नकार चेहरे
दिल में छुपाए खंज़र देखो वे हार पहनाने लगे
शुरूर आँखो की यूँ उतरे दिलों के समन्दर में
नीम शब को सितारे ’प्रेम’ गीत गुनगुनाने लगे।

