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हमीं मिसाले-वफ़ा बूए-गुल चमन में रहे / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

हमीं मिसाले-वफ़ा बूए-गुल चमन में रहे
रहे हरा ये गुलिस्तां इसी लगन में रहे।

वो और थे जो मुसीबत में गांव छोड़ गये
वतन परस्त हैं हम इसलिए वतन में रहे।

सबब बता न सकेंगे मगर है चाह बहुत
दरख़्त उनका लगाया मेरे ज़ेहन में रहे।

मेरी निगाह दे छुपाता नहीं कोई दुश्मन
भले वो शख्स किसी खास पैरहन में रहे।

बदलते दौर रहे फिर भी रुख़ बदल न सका
वही रिवाज़ पुराने बने चलन में रहे।

वो हमको ग़ैर समझते हैं आज भी लेकिन
हमें है फख्र कि हम उनकी अंजुमन में रहे।

बदन के ज़ख़्म ही बनते हैं आबरू 'विश्वास'
शहीद कोई ज़रूरी नहीं कफ़न में रहे।