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आम की टहनी / कैलाश गौतम

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देख करके बौर वाली
 
आम की टहनी
 
तन गये घुटने कि जैसे
 खुल गयी कुहनी।गई कुहनी ।
धूप बतियाती हवा से
 
रंग बतियाते
 
फूल-पत्तों के ठहाके
 
दूर तक जाते
छू गई चुटकी
हँसी की हो गई बोहनी ।
छू गयी चुटकी हंसी की हो गई बोहनी।  पीठ पर बस्ता लियेलिए
विद्या कसम खाते
 
जा रहे स्कूल बच्चे
 
शब्द खनकाते
इस तरह
सब रम गए हैं सुध नहीं अपनी ।
इस तरह  सब रम गये हैं सुध नहीं अपनी।  राग में डूबीं दिशायेंदिशाएँ
रंग में डूबीं
 हाथ आयी आई ज़िन्दगी के 
संग में डूबीं
  कल  उतरने जा रही है खेत में कटनी</poem>
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