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सूरज जी / कृष्ण शलभ

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|रचनाकार=कृष्ण शलभ}}
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सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो
मंगल को बाज़ार भी
कभी¹कभी कभी-कभी छुट्टी कर लेता
पापा का अख़बार भी