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"बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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| − | बीती विभावरी जाग री! | + | बीती विभावरी जाग री ! |
| − | अम्बर पनघट में डुबो रही | + | अम्बर पनघट में डुबो रही- |
| − | तारा घट ऊषा | + | तारा-घट ऊषा नागरी । |
| − | खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा | + | खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा, |
| − | किसलय का अंचल डोल रहा | + | किसलय का अंचल डोल रहा, |
| − | लो यह लतिका भी भर लाई | + | लो यह लतिका भी भर लाई- |
| − | मधु मुकुल नवल रस | + | मधु मुकुल नवल रस गागरी । |
| − | अधरों में राग अमंद | + | अधरों में राग अमंद पिए, |
| − | अलकों में मलयज बंद | + | अलकों में मलयज बंद किए- |
| − | तू अब तक सोई है आली | + | तू अब तक सोई है आली ! |
| − | आँखों में भरे विहाग | + | आँखों में भरे विहाग री । |
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11:45, 4 जुलाई 2011 का अवतरण
| इस रचना को आप सस्वर सुन सकते हैं: |
| आवाज़: अज्ञात |
बीती विभावरी जाग री !
अम्बर पनघट में डुबो रही-
तारा-घट ऊषा नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी ।
अधरों में राग अमंद पिए,
अलकों में मलयज बंद किए-
तू अब तक सोई है आली !
आँखों में भरे विहाग री ।

