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नन्दा देवी-9 / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ / अज्ञेय
}}
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<Poem>
: कितनी जल्दी
झिझकीं
ओट हो गईं, नन्दा !
उतने ही मेंबीन में बीन ले गईं
धूप-कुन्दन की
अन्तिम कनिका
धुन्ध की झीनी यवनिका।
'''बिनसर, नवम्बर, 1972'''
</poem>
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