|संग्रह=लीलटांस / कन्हैया लाल सेठिया
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<Poem>
चनण रै वन में
सैल कर‘र
हिमाळै रो गरब,
घालण लागगी डील
साव माड़ी नद्यांनदयां,
जलमण लागग्या
बगत रै घरां
अबै इन्छ‘र छोडैलो
आप रौ खोळियो
</Poem>