Changes

{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=कालिदास
|संग्रह=ऋतु संहार ऋतुसंहार‍ / कालिदास}}{{KKAnthologyGarmi}}{{KKCatKavita}}
[[Category:संस्कृत]]
<poem>
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !
सूर्य भीषण हो गया अब,चन्द्रमा स्पृहणीय सुन्दर
कर दिये हैं रिक्त सारे वारिसंचय स्नान कर-कर
रम्य सुखकर सांध्यवेला शांति देती मनोहर ।
शान्त मन्मथ का हुआ वेग अपने आप बुझकर
दीर्घ तप्त निदाघ देखो, छा गया कैसा अवनि पर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर!सविभ्रमसस्मित नयन बंकिम मनोहर जब चलातींप्रिय कटाक्षों से विलासिनी रूप प्रतिमा गढ़ जगातींप्रवासी उर में मदन का नवल संदीपन जगा कररात शशि के चारु भूषण से हृदय जैसे भूला कर
सूर्य भीषण हो गया अब,चन्द्रमा स्पृहणीय सुन्दरप्रिये आया ग्रीष्म खरतर!
तीव्र जलती है तृषा अब भीम विक्रम और उद्यमभूल अपना, श्वास लेता बार बार विश्राम शमदमखोल मुख निज जीभ लटका अग्रकेसरचलित केशरिपास के गज भी न उठ कर दिये हैं रिक्त सारे वारिसंचय स्नान कर-करमारता है अब मृगेश्वर
रम्य सुखकर सांध्यवेला शांति देती मनोहर ।प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!
शान्त मन्मथ का हुआ वेग किरण दग्ध, विशुष्क अपने आप बुझकरकण्ठ से अब शीत सीकरग्रहण करने, तीव्र वर्धित तृषा पीड़ित आर्त्त कातरवे जलार्थी दीर्घगज भी केसरी का त्याग कर डरघूमते हैं पास उसके, अग्नि सी बरसी हहर कर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर! क्लांत तन मन रे कलापी तीक्ष्ण ज्वाला मे झुलसताबर्ह में धरशीश बैठे सर्प से कुछ न कहता, भद्रमोथा सहित कर्म शुष्क-सर को दीर्घ तप्त निदाघ देखोअपनेपोतृमण्डल से खनन कर भूमि के भीतर दुबकनेवराहों के यूथ रत हैं, सूर्य्य-ज्वाला में सुलग कर प्रिये आया ग्रीष्म खरतर! दग्ध भोगी तृषित बैठे छत्रसे फैला विकल फननिकल सर से कील भीगे भेक फनतल स्थित अयमन,निकाले सम्पूर्ण जाल मृणाल करके मीन व्याकुल,भीत द्रुत सारस हुए, गज परस्पर घर्षण करें चल,एक हलचल ने किया पंकिल सकल सर हो तृषातुर, प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!  रवि प्रभा से लुप्त शिर- मणि- प्रभा जिसकी फणिधरलोल जिहव, अधिर मारुत पीरहा, छा गया कैसा अवनि परआलीढ़सूर्य्य ताप तपा हुआ विष अग्नि झुलसा आर्त्त कातरत॓षाकुल मण्डूक कुल को मारता है अब न विषधर प्रिये आया ग्रीष्म खरतर! प्यास से आकुल फुलाये वक्त्र नथुने उठा कर मुखरक्त जिह्व सफेन चंचल गिरि गुहा से निकल उन्मुखढ़ूंढने जल चल पड़ा महिषीसमूह अधिर होकरधूलि उड़ती है खुरों के घात से रूँद ऊष्ण सत्वर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर!</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,176
edits