{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह= ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी ! / फ़राज़
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>फिर उसी रहगुज़ार पर शायद हम कभी मिल सकें मगर शायद
जान पहचान से ही क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद
फिर उसी राहगुज़र पर शायद जिन के हम मुन्तज़िर<brref>प्रतीक्षारत</ref> रहे उनको हम कभी मिल सकें मगर गये और हमसफ़र शायद <br><br>
जान पहचान से ही क्या होगा <br>अजनबीयत की धुंध छंट जाएफिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर चमक उठे तेरी नज़र शायद <br><br>
मुन्तज़िर जिन के हम रहे उनको <br>जिंदगी भर लहू रुलाएगीमिल गये और हमसफ़र शायद यादे -याराने-बेख़बर<brref>भूले बिसरे दोस्तों की यादें<br/ref> शायद
जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं "फ़राज़" <br>फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद <br><br/poem>{{KKMeaning}}