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एक टिम-टिम लौ / शशिकान्त गीते

1 byte added, 05:44, 1 सितम्बर 2020
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रात मावस की, अकेलीहठीली
एक टिम-टिम लौ।
हवाएँ घात करती हैं
वायदों से मुकरती तिमिर के कान भरती हैं
जानती हैं पर-अकाजी
रोज़ फटती पौ।
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