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"जब किसी से कोई गिला रखना / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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इस में रोने की जगह रखना  
 
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तामीर - निर्माण , रचना
  
 
मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये <br>
 
मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये <br>

23:11, 16 दिसम्बर 2008 का अवतरण

शायर: निदा फ़ाज़ली

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जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना


यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना


घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना

तामीर - निर्माण , रचना

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना


मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना