भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ठारहे घनश्याम उतै / ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुर }} <poem>ठारहे घनश्याम उतै, इत मैं पुनि आनि अटा...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:52, 28 जुलाई 2009 के समय का अवतरण
ठारहे घनश्याम उतै, इत मैं पुनि आनि अटा चझिांकी।
जानति हौ तुमं ब्रज रीति, न प्रीति रहै कबं पल ढांकी॥
'ठाकुर कैसें भूलत नाहिनै, ऐसी अरी वा बिलोकनि बांकी।
भावत ना छिन भौन को बैठिबो, घूंघट कौन को लाज कहां की॥

