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ख़त-एक / अवतार एनगिल

362 bytes removed, 17:57, 6 नवम्बर 2009
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|रचनाकार=अवतार एन गिल
|संग्रह=एक और दिन / अवतार एन गिलएनगिल
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हे पुत्री!
जाने कब कितने युगकिस मोड़ परयह कायर पिताकिस भेस में तुम्हारा वध करता रहामिल जाये अपने ही लहू की बहुरूपियासच्चाई से डरता रहा
जाने कब वहहे पुत्री!बादल पुतेरखना याद काले आकाश जब कभी तुम इस जनक से उतरेऔर कहे--मिलने आओगीचलें?इसे संपूर्ण प्राणों से जाने कब किसी चमचमाते धवल दिन वह बाज़ की मानिंद गिरेऔर झपट ले इस नन्हीं चिड़िया कोबीचों-बीच हवा में अपनी ही लुका-छिपी के इस खेल में तुम्हारा बहुरूपिया जाने कबसिपाही बनकर आयेइस चोर की घिग्घी बँधेवह इस काँपती कलाई पर हाथ धरेऔर हँसकर कहे:पकड़ लिया न!प्रतीक्षा करने पाओगी
</poem>
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