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कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो
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04:13, 7 दिसम्बर 2009
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
ऐ
सखी
सखि
साजन न सखि! चंदा।।
24.
डा० जगदीश व्योम
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