"विदेश में तड़पती हूँ / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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| − | रंग बिरंगे फूलों से आच्छादित घर, | + | मशीनें करती हैं ज्यादा काम, |
| − | हरी-हरी घास जैसे मखमल का गलीचा | + | बगीचे मे लगे पेड़ -पौधे, |
| − | मन को सहज ही मोह लेता है, | + | रंग बिरंगे फूलों से आच्छादित घर, |
| + | हरी-हरी घास जैसे मखमल का गलीचा | ||
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जैसे कहता हो-<b> | जैसे कहता हो-<b> | ||
| − | देखो,मैं अकेला ही हँस रहा हूँ, | + | देखो,मैं अकेला ही हँस रहा हूँ, |
| − | तुम भी हँसो, | + | तुम भी हँसो, |
| − | उदासी के लिए यहाँ जगह नहीं है। | + | उदासी के लिए यहाँ जगह नहीं है। |
| − | अकेले ही रहकर जीना सीखो, | + | अकेले ही रहकर जीना सीखो, |
| − | यहाँ आत्मीयता और संवेदना का, | + | यहाँ आत्मीयता और संवेदना का, |
| − | कोई मूल्य नहीं? | + | कोई मूल्य नहीं? |
| − | यहाँ सब कुछ है, | + | यहाँ सब कुछ है, |
| − | पर मानवता नहीं, | + | पर मानवता नहीं, |
| − | आप तड़पेंगे ,रोयेंगे, | + | आप तड़पेंगे ,रोयेंगे, |
| − | सर पीट-पीट कर चिलायेंगे | + | सर पीट-पीट कर चिलायेंगे , |
| − | फिर भी आपके पड़ोसी को, | + | फिर भी आपके पड़ोसी को, |
| − | सुनाई नहीं पड़ेगा । | + | सुनाई नहीं पड़ेगा । |
| − | क्योंकि यहाँ लोगों के, | + | क्योंकि यहाँ लोगों के, |
| − | कान नहीं होते, | + | कान नहीं होते, |
| − | मदद के नाम पर, | + | मदद के नाम पर, |
| − | पुलिस आयेगी,पड़ोसी नहीं | + | पुलिस आयेगी,पड़ोसी नहीं |
| − | इंसानियत क्या है? | + | इंसानियत क्या है? |
| − | वे समझते नहीं | + | वे समझते नहीं |
| − | कितना है ज़ज़्बातों का अभाव यहाँ? | + | कितना है ज़ज़्बातों का अभाव यहाँ? |
| − | कितना है बनावटीपन यहाँ? | + | कितना है बनावटीपन यहाँ? |
| − | अपने देश में हम लड़ते हैं,झगड़्ते हैं, | + | अपने देश में हम लड़ते हैं,झगड़्ते हैं, |
| − | वक़्त पड़ने पर हम- | + | वक़्त पड़ने पर हम- |
| − | दूसरों के साथ रोते हैं,हँसते है, | + | दूसरों के साथ रोते हैं,हँसते है, |
| − | मदद करने के लिए तड़पते हैं, | + | मदद करने के लिए तड़पते हैं, |
| − | यही आत्मीयता और स्नेह तो, | + | यही आत्मीयता और स्नेह तो, |
| − | मेरे देश की खासियत है, | + | मेरे देश की खासियत है, |
| − | जिसके लिए - | + | जिसके लिए - |
| − | मैं विदेश में तड़पती हूँ ।< | + | मैं विदेश में तड़पती हूँ । |
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22:16, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण
कतारों में बने लकड़ी के घर,
रंग-रोगन की खूबसूरती
सुविधाएं एवं ऐशो आराम,
मशीनें करती हैं ज्यादा काम,
बगीचे मे लगे पेड़ -पौधे,
रंग बिरंगे फूलों से आच्छादित घर,
हरी-हरी घास जैसे मखमल का गलीचा
मन को सहज ही मोह लेता है,
जैसे कहता हो-
देखो,मैं अकेला ही हँस रहा हूँ,
तुम भी हँसो,
उदासी के लिए यहाँ जगह नहीं है।
अकेले ही रहकर जीना सीखो,
यहाँ आत्मीयता और संवेदना का,
कोई मूल्य नहीं?
यहाँ सब कुछ है,
पर मानवता नहीं,
आप तड़पेंगे ,रोयेंगे,
सर पीट-पीट कर चिलायेंगे ,
फिर भी आपके पड़ोसी को,
सुनाई नहीं पड़ेगा ।
क्योंकि यहाँ लोगों के,
कान नहीं होते,
मदद के नाम पर,
पुलिस आयेगी,पड़ोसी नहीं
इंसानियत क्या है?
वे समझते नहीं
कितना है ज़ज़्बातों का अभाव यहाँ?
कितना है बनावटीपन यहाँ?
अपने देश में हम लड़ते हैं,झगड़्ते हैं,
वक़्त पड़ने पर हम-
दूसरों के साथ रोते हैं,हँसते है,
मदद करने के लिए तड़पते हैं,
यही आत्मीयता और स्नेह तो,
मेरे देश की खासियत है,
जिसके लिए -
मैं विदेश में तड़पती हूँ ।

