"हरियाली हर ले जाते हो / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | तुम नफ़रत को फैलाते हो ॥ | |
| − | संबंधों का मैं संबल बनती, | + | |
| − | अरू प्रेम की ज्योति जगाती हूं। | + | मैं फूलों की कोमलता हूं, |
| − | करती प्रयास मंगल का मैं, | + | तुम मधुकर कठोर बन आते हो। |
| − | तुम नफ़रत को फैलाते हो ॥ | + | ले करके रस सब फूलों का |
| − | मैं फूलों की कोमलता हूं, | + | अन्यत्र खोज में जाते हो॥ |
| − | तुम मधुकर कठोर बन आते हो। | + | |
| − | ले करके रस सब फूलों का | + | करती हूं प्रतीक्षा सदियों तक |
| − | अन्यत्र खोज में जाते हो॥ | + | तुम पलभर में घबराते हो । |
| − | करती हूं प्रतीक्षा सदियों तक | + | रहती हूं मौन त्याग करके, |
| − | तुम पलभर में घबराते हो । | + | तुम पल-पल हमें जताते हो॥ |
| − | रहती हूं मौन त्याग करके, | + | |
| − | तुम पल-पल हमें जताते हो॥ | + | खोने का डर तो तुमको है, |
| − | खोने का डर तो तुमको है, | + | इसलिए झपट सब लेते हो । |
| − | इसलिए झपट सब लेते हो । | + | कहने को कुछ नहीं पास मगर, |
| − | कहने को कुछ नहीं पास मगर, | + | इतिहास नया रच जाते हैं॥ |
| − | इतिहास नया रच जाते हैं॥ | + | |
| − | सरिता सलिला सी बहती हम, | + | सरिता सलिला सी बहती हम, |
| − | सिंचित करती हैं जीवन को। | + | सिंचित करती हैं जीवन को। |
| − | तुम रहते स्थिर एक जगह , | + | तुम रहते स्थिर एक जगह , |
| − | कूलों सा कठोर बन जाते हो॥ | + | कूलों सा कठोर बन जाते हो॥ |
| − | वन-उपवन की सुन्दरता हम, | + | |
| − | तुम पतझड. बन कर आते हो। | + | वन-उपवन की सुन्दरता हम, |
| − | करते हो तांडव न्रत्य तुम्हीं, | + | तुम पतझड. बन कर आते हो। |
| − | हरियाली हर ले जाते हो ॥ | + | करते हो तांडव न्रत्य तुम्हीं, |
| − | संघर्षों में जी लेते हम, | + | हरियाली हर ले जाते हो ॥ |
| − | तुम सुख को गले लगाते हो। | + | |
| − | करते हो सुख परिवर्तन भी, | + | संघर्षों में जी लेते हम, |
| − | बादल बन | + | तुम सुख को गले लगाते हो। |
| + | करते हो सुख परिवर्तन भी, | ||
| + | बादल बन उड़-उड़ जाते हो॥ | ||
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22:27, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुझमें मुझमें बस इक अन्तर,
तुम नर हो अरू मैं नारी हूं।
देती हूं जन्म मैं जीवन को ,
तुम जीवन को ठुकराते हो ॥
संबंधों का मैं संबल बनती,
अरू प्रेम की ज्योति जगाती हूं।
करती प्रयास मंगल का मैं,
तुम नफ़रत को फैलाते हो ॥
मैं फूलों की कोमलता हूं,
तुम मधुकर कठोर बन आते हो।
ले करके रस सब फूलों का
अन्यत्र खोज में जाते हो॥
करती हूं प्रतीक्षा सदियों तक
तुम पलभर में घबराते हो ।
रहती हूं मौन त्याग करके,
तुम पल-पल हमें जताते हो॥
खोने का डर तो तुमको है,
इसलिए झपट सब लेते हो ।
कहने को कुछ नहीं पास मगर,
इतिहास नया रच जाते हैं॥
सरिता सलिला सी बहती हम,
सिंचित करती हैं जीवन को।
तुम रहते स्थिर एक जगह ,
कूलों सा कठोर बन जाते हो॥
वन-उपवन की सुन्दरता हम,
तुम पतझड. बन कर आते हो।
करते हो तांडव न्रत्य तुम्हीं,
हरियाली हर ले जाते हो ॥
संघर्षों में जी लेते हम,
तुम सुख को गले लगाते हो।
करते हो सुख परिवर्तन भी,
बादल बन उड़-उड़ जाते हो॥

