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"हरियाली हर ले जाते हो / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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तुझमें मुझमें बस इक अन्तर,
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तुम नर हो अरू मैं नारी हूं।
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सरिता सलिला सी बहती हम,<br>
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सिंचित करती हैं जीवन को।<br>
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कूलों सा कठोर बन जाते हो॥
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करते हो तांडव न्रत्य तुम्हीं,<br>
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करते हो तांडव न्रत्य तुम्हीं,  
संघर्षों में जी लेते हम,<br>
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हरियाली हर ले जाते हो ॥
तुम सुख को गले लगाते हो।<br>
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करते हो सुख परिवर्तन भी,<br>
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संघर्षों में जी लेते हम,  
बादल बन उड.-उड. जाते हो॥<br><br>
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तुम सुख को गले लगाते हो।  
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करते हो सुख परिवर्तन भी,  
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बादल बन उड़-उड़ जाते हो॥
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22:27, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुझमें मुझमें बस इक अन्तर,
तुम नर हो अरू मैं नारी हूं।
देती हूं जन्म मैं जीवन को ,
तुम जीवन को ठुकराते हो ॥

संबंधों का मैं संबल बनती,
अरू प्रेम की ज्योति जगाती हूं।
करती प्रयास मंगल का मैं,
तुम नफ़रत को फैलाते हो ॥

मैं फूलों की कोमलता हूं,
तुम मधुकर कठोर बन आते हो।
ले करके रस सब फूलों का
अन्यत्र खोज में जाते हो॥

करती हूं प्रतीक्षा सदियों तक
तुम पलभर में घबराते हो ।
रहती हूं मौन त्याग करके,
तुम पल-पल हमें जताते हो॥

खोने का डर तो तुमको है,
इसलिए झपट सब लेते हो ।
कहने को कुछ नहीं पास मगर,
इतिहास नया रच जाते हैं॥

सरिता सलिला सी बहती हम,
सिंचित करती हैं जीवन को।
तुम रहते स्थिर एक जगह ,
कूलों सा कठोर बन जाते हो॥

वन-उपवन की सुन्दरता हम,
तुम पतझड. बन कर आते हो।
करते हो तांडव न्रत्य तुम्हीं,
हरियाली हर ले जाते हो ॥

संघर्षों में जी लेते हम,
तुम सुख को गले लगाते हो।
करते हो सुख परिवर्तन भी,
बादल बन उड़-उड़ जाते हो॥