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जंगल बोला / अवतार एनगिल

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{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=मनखान आएगा / अवतार एनगिल; तीन डग कविता / अवतार एनगिल}}{{KKCatKavita}}<poem>मैंने जंगल से कहा__
मेरी बगिया से बाहर लगा जंगला
तुम्हारी लक्ष्मण रेखा है
जब तुम अपना फाटक खोल
मेरी सीमा से आते हो
उधम ऊधम मचाते हो
तब तुम्हारी लक्ष्मण रेखा कहाँ जाती है