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सूर्य / एकांत श्रीवास्तव

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<Poem>
उधर
जमीन ज़मीन फट रही है
और वह उग रहा है
चमक रही हैं नदी की ऑंखें
वह उग रहा है
वह खिलेगा
जल भरी ऑंखों आँखों के सरोवर में
रोशनी की फूल बनकर
वह चमकेगा
उग रहा है
उधर
आहिस्‍ता-आहिस्‍ता.आहिस्‍ता।
</poem>
 
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 10:44, 24 अप्रैल 2010 (UTC)
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