(New page: {{KKGlobal}} लेखक: अज्ञेय Category:कविताएँ Category:अज्ञेय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ जब आवे द...) |
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| + | वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे | ||
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| + | हार, दुःख, अवसान, मृत्यु का | ||
| + | अंधकार भी देखा तो | ||
| + | सच-सच देखा | ||
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| − | + | उन्हें जब आवे दिन | |
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| − | + | पर उस पार | |
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| − | + | सच्ची कहने देना | |
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17:33, 9 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
जब आवे दिन
तब देह बुझे या टूटे
इन आँखों को
हँसती रहने देना!
हाथों ने बहुत अनर्थ किये
पग ठौर-कुठौर चले
मन के
आगे भी खोटे लक्ष्य रहे
वाणी ने (जाने अनजाने) सौ झूठ कहे
पर आँखों ने
हार, दुःख, अवसान, मृत्यु का
अंधकार भी देखा तो
सच-सच देखा
इस पार
उन्हें जब आवे दिन
ले जावे
पर उस पार
उन्हें
फिर भी आलोक कथा
सच्ची कहने देना
अपलक
हँसती रहने देना
जब आवे दिन!