| (इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
| पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
गुनगुनी धूप सी | गुनगुनी धूप सी | ||
माह पूस की | माह पूस की | ||
| + | (4) | ||
| + | तुम हंसे तो | ||
| + | बिजली सी चमकी | ||
| + | बादर झरे | ||
</poem> | </poem> | ||
17:01, 4 मई 2015 के समय का अवतरण
(1)
तुम आये तो
महकी फुलवारी
मायूसी हारी
(2)
हरारत है
आलिंगन तुम्हारा
पिघला तन
(3)
तेरी आहट
गुनगुनी धूप सी
माह पूस की
(4)
तुम हंसे तो
बिजली सी चमकी
बादर झरे