(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश व्योम }} जाने क्या हो गया, कि<br /> सूरज इतना ल...) |
|||
| (2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
| पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=जगदीश व्योम | |रचनाकार=जगदीश व्योम | ||
}} | }} | ||
| + | {{KKCatNavgeet}} | ||
| + | <poem> | ||
| − | जाने क्या हो गया, कि | + | जाने क्या हो गया, कि |
| − | सूरज इतना लाल हुआ। | + | सूरज इतना लाल हुआ। |
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | प्यासी हवा हाँफती | |
| + | फिर-फिर पानी खोज रही | ||
| + | सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी | ||
| + | बानी खोज रही | ||
| + | नीम द्वार का, छाया खोजे | ||
| + | पीपल गाछ तलाशे | ||
| + | नदी खोजती धार | ||
| + | कूल कब से बैठे हैं प्यासे | ||
| + | पानी-पानी रटे | ||
| + | रात-दिन, ऐसा ताल हुआ | ||
| + | जाने क्या हो गया, कि | ||
| + | सूरज इतना लाल हुआ। | ||
| + | सूने-सूने राह, हाट, वन | ||
| + | सब कुछ सूना-सूना | ||
| + | बढ़ता जाता और दिनो-दिन | ||
| + | तेज धूप का दूना | ||
| + | धरती व्याकुल, | ||
| + | अम्बर व्याकुल | ||
| + | व्याकुल ताल-तलैया | ||
| + | पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल | ||
| + | व्याकुल बछड़ा-गैया | ||
| + | अब तो आस तुझी से बादल | ||
| + | क्यों कंगाल हुआ | ||
जाने क्या हो गया, कि | जाने क्या हो गया, कि | ||
| + | सूरज इतना लाल हुआ। | ||
| − | + | -डॅा. जगदीश व्योम | |
| + | </poem> | ||
11:14, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
प्यासी हवा हाँफती
फिर-फिर पानी खोज रही
सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी
बानी खोज रही
नीम द्वार का, छाया खोजे
पीपल गाछ तलाशे
नदी खोजती धार
कूल कब से बैठे हैं प्यासे
पानी-पानी रटे
रात-दिन, ऐसा ताल हुआ
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
सूने-सूने राह, हाट, वन
सब कुछ सूना-सूना
बढ़ता जाता और दिनो-दिन
तेज धूप का दूना
धरती व्याकुल,
अम्बर व्याकुल
व्याकुल ताल-तलैया
पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल
व्याकुल बछड़ा-गैया
अब तो आस तुझी से बादल
क्यों कंगाल हुआ
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
-डॅा. जगदीश व्योम