भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अहिपन / राजकमल चौधरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatMa...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatMaithiliRachna}} | {{KKCatMaithiliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
| − | + | हिपनमे नहि लिखू फूल पात-लता-चक्र | |
| − | हे स्वप्न- | + | हे स्वप्न-संभवा कामिनी, |
| − | आब नहि घोरू सिनूर आ उज्जर पिठार | + | आब नहि घोरू सिनूर आ उज्जर पिठार! |
जखन पूर्णिमेक साँझमे | जखन पूर्णिमेक साँझमे | ||
| − | चन्द्रमा भ’ गेल | + | चन्द्रमा भ’ गेल छथि पीयर आ बक्र |
| − | आब नहि | + | आब नहि फोलिक’ राखू |
| − | अप्पन मोनक दुआर ! | + | अप्पन मोनक दुआर! |
| − | हे स्वप्न- | + | |
| − | आब एहि घर | + | हे स्वप्न-संभवा कामिनी, |
| − | जुनि करू जुनि करू... | + | आब एहि घर-आङनमे अनागतक प्रतीक्षा |
| − | अहिपनक फूल-पात-लता बनि | + | जुनि करू, जुनि करू... |
| − | + | अहिपनक फूल-पात-लता बनि जायत | |
| − | कोनो देवता नहि क’ | + | गहुमन साप, |
| − | + | कोनो देवता नहि क’ सकताह अहाँक प्राण-रक्षा | |
| − | परिणय | + | पावनिक राति बीति जायत पूजा-विहीन |
| + | परिणय-विहीन! | ||
| + | |||
| + | ''(मिथिला मिहिर: 5.12.65)'' | ||
</poem> | </poem> | ||
11:35, 5 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
हिपनमे नहि लिखू फूल पात-लता-चक्र
हे स्वप्न-संभवा कामिनी,
आब नहि घोरू सिनूर आ उज्जर पिठार!
जखन पूर्णिमेक साँझमे
चन्द्रमा भ’ गेल छथि पीयर आ बक्र
आब नहि फोलिक’ राखू
अप्पन मोनक दुआर!
हे स्वप्न-संभवा कामिनी,
आब एहि घर-आङनमे अनागतक प्रतीक्षा
जुनि करू, जुनि करू...
अहिपनक फूल-पात-लता बनि जायत
गहुमन साप,
कोनो देवता नहि क’ सकताह अहाँक प्राण-रक्षा
पावनिक राति बीति जायत पूजा-विहीन
परिणय-विहीन!
(मिथिला मिहिर: 5.12.65)

