भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रेम की स्मृतियाँ-3 / येहूदा आमिखाई" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
| पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
[[Category:यहूदी भाषा]] | [[Category:यहूदी भाषा]] | ||
| − | + | <poem> | |
'''वसीयत का खुलना''' | '''वसीयत का खुलना''' | ||
| − | |||
मैं अभी कमरे में हूँ | मैं अभी कमरे में हूँ | ||
| − | |||
अब से दो दिन बाद मैं देखूँगा इसे | अब से दो दिन बाद मैं देखूँगा इसे | ||
| − | |||
केवल बाहर से | केवल बाहर से | ||
| − | |||
तुम्हारे कमरे का वह बंद दरवाज़ा | तुम्हारे कमरे का वह बंद दरवाज़ा | ||
| − | + | जहाँ हमने सिर्फ़ एक दूसरे से प्यार किया | |
| − | जहाँ हमने | + | |
| − | + | ||
पूरी मनुष्यता से नहीं | पूरी मनुष्यता से नहीं | ||
| − | + | और तब हम मुड़ जाएँगें नए जीवन की ओर | |
| − | और तब हम मुड़ | + | |
| − | + | ||
मृत्यु की सजग तैयारियों वाले विशिष्ट तौर-तरीकों के बीच | मृत्यु की सजग तैयारियों वाले विशिष्ट तौर-तरीकों के बीच | ||
| − | |||
जैसे कि बाइबल में मुड़ जाना दीवार की ओर | जैसे कि बाइबल में मुड़ जाना दीवार की ओर | ||
| − | + | जिस हवा में हम साँस लेते हैं उसके भी ऊपर जो ईश्वर है | |
| − | जिस हवा में हम | + | |
| − | + | ||
जिसने हमें दो आँखे और पाँव दिए | जिसने हमें दो आँखे और पाँव दिए | ||
| − | + | उसी ने बनाया दो आत्माएँ भी हमें | |
| − | उसी ने बनाया दो | + | |
| − | + | ||
और वहाँ बहुत दूर | और वहाँ बहुत दूर | ||
| − | |||
किसी दिन हम खोलेंगे इन दिनों को | किसी दिन हम खोलेंगे इन दिनों को | ||
| − | |||
जैसे कोई खोलता है वसीयत | जैसे कोई खोलता है वसीयत | ||
| − | |||
मृत्यु के कई बरस बाद ! | मृत्यु के कई बरस बाद ! | ||
| + | |||
| + | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य''' | ||
| + | </poem> | ||
00:16, 12 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
|
वसीयत का खुलना
मैं अभी कमरे में हूँ
अब से दो दिन बाद मैं देखूँगा इसे
केवल बाहर से
तुम्हारे कमरे का वह बंद दरवाज़ा
जहाँ हमने सिर्फ़ एक दूसरे से प्यार किया
पूरी मनुष्यता से नहीं
और तब हम मुड़ जाएँगें नए जीवन की ओर
मृत्यु की सजग तैयारियों वाले विशिष्ट तौर-तरीकों के बीच
जैसे कि बाइबल में मुड़ जाना दीवार की ओर
जिस हवा में हम साँस लेते हैं उसके भी ऊपर जो ईश्वर है
जिसने हमें दो आँखे और पाँव दिए
उसी ने बनाया दो आत्माएँ भी हमें
और वहाँ बहुत दूर
किसी दिन हम खोलेंगे इन दिनों को
जैसे कोई खोलता है वसीयत
मृत्यु के कई बरस बाद !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य

