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वृथा / अरुण कमल

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|संग्रह=पुतली में संसार / अरुण कमल
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जब उम्र कम थी
 
:::::काले थे केश और आभा थी
 
::::::पर मैं दुबला था बहुत
 
फिर उम्र बढ़ी
 
:::::शरीर गोटाया आँखों को थाह मिली
 
:::::पर कहाँ कैसे निबहना आता न था
 
अब जब उम्र हुई
 
::::::जानता हूँ दाँव-पेंच शास्त्र कुल
 
:::::पर साथ नहीं देह न थाह न आभा
 
कभी कच्चा कभी डम्भक कभी पुलपुल ।
</poem>
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