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रमा द्विवेदी

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|विविध=--
|जीवनी=[[रमा द्विवेदी / परिचय]]
 {{kkglobal}} रचनाकार:[[डा. रमा द्विवेदी]] [[Category:कविताएँ]] [[Category:डा. रमा द्विवेदी]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*[[मुझको हरित बनाओ अब /रमा द्विवेदी]]  *[[मुझको हरित बनाओ अब /रमा द्विवेदी]]   यह धरती अकुला रही,हमें तुम्हें बुला रही,<br> मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।<br><br>    लगाओ पेड़-पौधे तुम , प्रदूषण को भगाओ तुम पाओगे ताजी हवा , रोगों से मुक्ति पाओ तुम, चेहरा रहे खिला-खिला यही हमें बता रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही ।   जिसनें दिया तुम्हेंजन्म हैउसको न यूं सताओ तुम जन्मने का हक़ उसे भी दो यूं भ्रूण न मिटाओ तुम, सिष्टि चलेगी उससे ही ,बस बात यह बता रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।   मुझ पर बनाते घर-मकां , मुझ पर बनाते हो महल, मुझ पर उगाते अन्न-फल, मुझे रौंदते हो हर पहर, मुझमें मिलोगे अन्त में , बस बात यह समझा रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।   सदियों से रुदन कर रही , न सिसकियां तुमने सुनी, जर्जर हुई हर सांस है , टूटेगी जाने किस घड़ी, चेतावनी यह समझो प्रलय की घड़ी आ रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही ।   इतना सताओ न मुझे दुनिया में क़हर ढ़ाऊं मैं, अपनी नहीं चिन्ता मुझे कैसे तुम्हें बचाऊं मैं , इंसान ही के वास्ते , मैं खुद को थी मिटा रही मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही ।   मुझ पर बढ़ा जो भार है ,उसको जरा घटाओ तुम, आतंक को तुम रोक दो , यूं रक्त न बहाओ तुम, खुशहाल हों सबही यहां , मैं मन्नतें मना रही, मुझको हरित बनाओ अब , पुकार यह लगा रही।