हम समझते हैं आज़माने को
उज़्र कुछ चाहिए सताने को
संग-ए-दर से तेरे निकाली आग
हमने दुश्मन का घर जलाने को
चल के काबे में सजदा कर मोमिन
छोड़ उस बुत के आस्ताने को