Last modified on 6 अगस्त 2008, at 08:54

हम समझते हैं आज़माने को / मोमिन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:54, 6 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोमिन }}हम समझते हैं आज़माने को <br> उज़्र कुछ चाहिए सतान...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम समझते हैं आज़माने को

उज़्र कुछ चाहिए सताने को

संग-ए-दर से तेरे निकाली आग
हमने दुश्मन का घर जलाने को

चल के काबे में सजदा कर मोमिन
छोड़ उस बुत के आस्ताने को