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10 जुलाई {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वीरेन्द्र वत्स
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|संग्रह=
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<poem>
ज़िन्दगी के आईने में अक्स अपना देखिए
उम्र के सैलाब का चढ़ना-उतरना देखिए
बालपन का वो मचलना, वो छिटकना गोद से
हर अदा पे माँ की आँखों का चमकना देखिए
वो जवानी की मोहब्बत, वो पढ़ाई का बुखार
ख़्वाहिशों का ख़्वाहिशों के साथ लड़ना देखिए
मंज़िलों की खोज में लुटता रहा जी का सुकून
इक मुक़म्मल शख़्स का तिल-तिल बिखरना देखिए
अब बुढ़ापा ले रहा है ज़िन्दगी भर का हिसाब
वक़्त का चुपचाप मुट्ठी से सरकना देखिए
</poem>