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21 अगस्त {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विनीत पाण्डेय
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<poem>
नाक भी बड़ी कमाल है
है तो छोटी-सी पर करती बड़ा बवाल है
भारी से भारी आदमी की इज़्ज़त
का बोझ ख़ुद पर सहती है।
कभी ठीक होती कभी जाम रहती तो कभी बहती है
नाक सहनशीलता के मापदंड का उच्चतम स्तर है
चश्मे को टिकाने की जिम्मेदारी भी नाक पर है।
जब भी कोई बात किसी की साख पर आती है
तो बात कूद कर सीधे नाक पर आती है।
कभी ये नाक जुड़ी हुई रह कर भी कट जाती है।
जितनी कटती है प्रतिष्ठा उतनी ही घट जाती है।
नाक की महिमा बड़ी भारी है।
नाक क्रोध की सवारी है
ये केवल नाक की ही ख़ूबी है
जो कभी ऊँची हुई तो कभी डूबी है
जो नाक प्रोटोकॉल के साथ खड़ी होती है
वो अन्य नाकों से बड़ी होती है।
उसे बाक़ी नाकों की रगड़ाई बहुत भाती है
यदि कोई नाक अड़ जाए तो फ़िर
ये बड़ी वाली नाक उससे चने चबवाती है।
इसका महत्त्व हमें पौराणिक काल में भी दिखा है
राम-रावण युद्ध में भी नाक की अहम भूमिका है
द्वापर में भी इसका मसला बड़ा था
नाक की लड़ाई में तो भगवान् को भी आना पड़ा था
इसका मतलब ये निकलता है
नाक से ही क़द का पता चलता है
उदाहरण के लिए हाथी की सूंड लीजिए
यकीन न हो तो
उल्लू की नाक ढूँढ लीजिए
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