रह गई सूनी गली !
जल उठा फिर दीप धुन्धलाधुँधला-सा
किसी की याद में
एक बत्ती कण्ठ तक डूबी
वर्जनाओं में पली !
चान्दनी चाँदनी बिस्तर बिछाकर
सो गई दरगाह में
ढूँढ़ता फिरता पथिक मंज़िल
रतौन्धी रतौंधी राह में
सैर को निकली हिमानी
गुदगुदी करती हवा