{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>तुझमें मुझमें बस इक अन्तर, तुम नर हो अरू मैं नारी हूं। देती हूं जन्म मैं जीवन को , तुम जीवन को ठुकराते हो ॥
तुझमें मुझमें बस इक अन्तर,<br>तुम नर हो अरू मैं नारी हूं।<br>देती हूं जन्म मैं जीवन को ,<br>तुम जीवन को ठुकराते हो ॥<br><br>संबंधों का मैं संबल बनती,<br>अरू प्रेम की ज्योति जगाती हूं।<br>करती प्रयास मंगल का मैं,<br>तुम नफ़रत को फैलाते हो ॥<br><br> मैं फूलों की कोमलता हूं,<br>तुम मधुकर कठोर बन आते हो।<br>ले करके रस सब फूलों का <br> अन्यत्र खोज में जाते हो॥<br><br> करती हूं प्रतीक्षा सदियों तक<br>तुम पलभर में घबराते हो ।<br>रहती हूं मौन त्याग करके,<br>तुम पल-पल हमें जताते हो॥<br><br> खोने का डर तो तुमको है,<br>इसलिए झपट सब लेते हो ।<br>कहने को कुछ नहीं पास मगर,<br>इतिहास नया रच जाते हैं॥<br><br> सरिता सलिला सी बहती हम,<br>सिंचित करती हैं जीवन को।<br>तुम रहते स्थिर एक जगह ,<br>कूलों सा कठोर बन जाते हो॥<br><br> वन-उपवन की सुन्दरता हम,<br>तुम पतझड. बन कर आते हो।<br>करते हो तांडव न्रत्य तुम्हीं,<br>हरियाली हर ले जाते हो ॥<br><br> संघर्षों में जी लेते हम,<br>तुम सुख को गले लगाते हो।<br>करते हो सुख परिवर्तन भी,<br>बादल बन उड.उड़-उड. उड़ जाते हो॥ <br><br/poem>