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बार-बार / नीलेश रघुवंशी
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|संग्रह=घर-निकासी / नीलेश रघुवंशी
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एक बार घर के टूट जाने से
तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए
चिड़ियों की तरह
बनाएंगे
बनाएँगे
हम घर बार-बार।
</poem>
अनिल जनविजय
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